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निर्भया रेप केस से प्रेरित फ़िल्म "दिल्ली बस" मन मस्तिष्क पर छोड़ती है गहरा प्रभाव

फिल्म समीक्षा : दिल्ली बस
कलाकार : दिव्या सिंह, संजय सिंह, नीलिमा अज़ीम, अंजन श्रीवास्तव, जावेद हैदर, मुश्ताक खान, कमाल खान.
निर्देशक; शारिक मिन्हाज
निर्माता : विपुल शाह
रिलीज़ डेट: 29 नवंबर
बैनर :  वीएसपी प्रोडक्शन
रेटिंग : 3.5 स्टार्स
 
 
2012 में दिल्ली में घटित निर्भया के सामूहिक बलात्कार मामले से प्रेरित होकर इस सप्ताह सिनेमाघरों में फिल्म 'दिल्ली बस' रिलीज़ हुई है। चलती बस में निर्भया के साथ जो दरिंदगी हुई थी, पूरे देश को इस जघन्य अपराध ने झकझोर कर रख दिया था। इस भयावह बलात्कार से इंस्पायर्ड होकर बनी फ़िल्म दिल्ली बस आपके रोंगटे खड़े कर देगी।
 
इस दिल दहला देने वाली घटना को डायरेक्टर शारिक मिन्हाज ने फिल्म का रूप दिया है और एक प्रकार से उन हजारों लाखों लड़कियों, महिलाओं को श्रद्धांजलि अर्पित की है,  जो बलात्कारियों की शिकार बनी हैं।
 
अस्पताल में एक लड़की के चीखने चिल्लाने की रूह कांपने वाली आवाज़ से फ़िल्म दिल्ली बस शुरू होती है। मेडिकल स्टूडेंट श्रुति पांडेय को सामुहिक बलात्कार के बाद उस अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। उसी अस्पताल में जज साहब (अंजन श्रीवास्तव) की बेटी को एक बच्ची पैदा होती है। जज साहेब की बेटी की सहेली श्रुति पांडे रहती है जो डॉक्टरी की प्रैक्टिस करती है। वह यह घटना सुनकर टूट जाती है और अपने जज पिता से कहती है "अब बेटी नहीं चाहिए, उस हादसे के बाद नहीं। उस हादसे का पूरे हिंदुस्तान को अफसोस है।"
 
अभी अभी मां बनी एक औरत का यह कहना कि बेटी नहीं चाहिए इस समाज में, बहुत बड़ी बात है जो अपनी बेटी के प्रति उसका डर दिखाती है। वह असुरक्षित महसूस करती है इस वजह से वह यह संवाद बोलती है।
 
फिर जज साहब का फैसला सुनाया जाता है "श्रुति पांडेय के साथ हुई घटना नैतिकता की हार है, यह हार है एक मां के सपने की। यह मौत सभी के अंतरात्मा, मानवता की मौत है। इस जघन्य अपराध को केवल अमानवीय घटना कहना काफी नहीं है। ट्रेन, बस, रास्तों और अपने घरों में भी नारी सुरक्षित नहीं है। श्रुति पांडेय के सामूहिक बलात्कार के मुजरिमो को फांसी की सजा अदालत सुनाती है।"
 
लेकिन जब एक जर्नलिस्ट श्रुति की मां (नीलिमा अज़ीम) से पूछती हैं कि क्या मुजरिमो को फांसी होने से आप खुश हैं? तो उस की मां का जवाब समाज के मुंह पर एक थप्पड़ जैसा है "महिलाएं जब आज भी घर से बाहर निकलने में सुरक्षित महसूस नहीं करती तो फिर रेपिस्ट को फांसी देने से भी मैं खुश नहीं हूं। जब रात दिन सभी लड़कियां, महिलाएं सुरक्षित महसुस करेंगी, उस दिन लगेगा कि श्रुति को इंसाफ मिल गया।" 
 
इस फिल्म में दिव्या सिंह ने पीड़ित लड़की श्रुति का किरदार बखूबी निभाया है। श्रुति के प्रेमी अविनाश के चरित्र में संजय सिंह दिखे हैं वहीं शाहिद कपूर की मां नीलिमा अज़ीम ने श्रुति की माता की भूमिका निभाई है। बाकी एक्टर्स ने भी अच्छा अभिनय किया है।
 
निर्देशक शारिक मिन्हाज ने इतने संवेदनशील विषय को पर्दे पर पेश करने की चुनौती स्वीकार की है। हालांकि फिल्म 1 घण्टा 41 मिनट की है मगर बस के अंदर जो दृश्य दिखाए गए हैं वो काफी लंबे हो गए हैं, उन्हें एडिटिंग में थोड़ा कम किया जा सकता था। कई दृश्य, संवाद मन मस्तिष्क को विचलित कर देने वाले हैं।
 
फ़िल्म का संगीत अच्छा है। बबली हक और आरव ने प्रभावी धुनें कम्पोज़ की हैं जबकि जमील अहमद, सलीम आसिफी के लिखे बोल बेहतर हैं। दिव्या सिंह और संजय सिंह पर फिल्माया गया रोमांटिक गीत "बेतहाशा उड़ने लगे है हम" अच्छा है। वहीं "क्यों चला गया" एक बेहतरीन सिचुएशनल सॉन्ग है।
दिल्ली बस टाइटल सॉन्ग उस समय आता है जब श्रुति का इलाज चल रहा होता है। यह भी कहानी को आगे बढाने वाला गीत है। फ़िल्म का बैकग्राउंड म्युज़िक और बेहतर हो सकता था।
 
चलती बस में निर्भया के साथ जैसी दरिंदगी की गई थी, फिल्म ‘दिल्ली बस' उस दर्दनाक और शर्मनाक घटना की याद दिलाती है। निर्देशक इस मूवी के माध्यम से समाज में, पुरुषों की सोच में परिवर्तन लाना चाहते हैं। उस घटना के 12 साल बाद आज भी महिलाओं पर हो रहे जुल्म कम नहीं हुए हैं। फ़िल्म मेकर उसी समस्या को उजागर करना चाहते हैं, साथ ही यह सिनेमा महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गम्भीर सवाल भी उठाता है।
 
दिल्ली बस एक अच्छा प्रयास है। अभिनय, निर्देशन और म्युज़िक  बेहतर है मगर फ़िल्म में कहीं कहीं कुछ खामियां भी नजर आती हैं। सिनेमेटोग्राफी, एडिटिंग, बीजीएम के क्षेत्रों में और बेहतर ढंग से काम करने की जरूरत थी। कुछ गैर जरूरी दृश्यों को निकाल कर या उन्हें शॉर्ट कर के फ़िल्म की अवधि को 10-15 मिनट कम किया जा सकता था।
 
- G. Moin


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