Interview


मैं बहुत अलग दिमाग की लड़की हूँ: परिणीति चोपड़ा

बैडमिन्टन प्लेयर साइना नेहवाल की बायोपिक फिल्म 'साइना' में परिणीति चोपड़ा टाइटल रोल निभा रही हैं. इस फिल्म को अमोल गुप्ते ने डायरेक्ट किया है और इस फिल्म में ईशान नकवी ने परिणिति के कोच की भूमिका रियल और रील दोनों लाइफ में की है. साइना के बचपन की भूमिका नायेशा ने की है जो खुद भी एक बैडमिन्टन प्लेयर हैं. फिल्म के ट्रेलर लॉन्च के दौरान परिणीति चोपड़ा ने इस फिल्म, अपने किरदार की तय्यारी के बारे में विस्तार से बताया.
 
Q:जब आपको इस फिल्म का ऑफर आया तो आपका क्या रिएक्शन था?
A:देखिये मैं एक ऐसे चैलेन्ज भरे रोल को तलाश कर रही थी. जिस तरह की फिल्मे मैं कर रही थी, आम तौर पर लेखक मेरे लिए वैसे ही रोल लिख रहे थे. मैं लोगों को सरप्राइज देना चाहती थी, इसलिए जब मुझे यह कहानी सुनाई गई तो मुझे लगा कि मैं तो ऐसी ही कहानी की तलाश में थी. मैं हैप्पी गर्ल और गर्ल नेक्स्ट डोर के रूप में जानी जाती थी, हालाँकि मैं ऐसी नहीं हूँ. मैं स्क्रीन पर जैसी हूँ वैसी दिखाना चाहती थी. जैसे फ़िल्मी भाषा में कहा जाता है कि इस फिल्म की कहानी को लेकर मार्केट में चर्चा थी, तो मैंने भी सुनी थी. मैंने सोचा था कि अगर यह फिल्म मैं करती तो मजा आ जाता. क्योंकि मैं कुछ अलग करना चाहती थी जिसमे मुझे काफी होम वर्क करना पड़े. हर फिल्म की अपनी जर्नी होती है. यह फिल्म मैंने लगभग दो साल पहले निर्देशक अमोल गुप्ते से सुनी थी और बस हमारी कोई बातचीत नहीं हुई. मेरे लिए साइना की बायोपिक करना सोने पे सुहागा जैसा रोल था. और फिर इसके डायरेक्टर अमोल गुप्ते हैं तो मेरा रिएक्शन ऐसा था कि साइना नेहवाल, अमोल गुप्ते, कहाँ साइन करना है. मैंने जब इसकी स्क्रिप्ट सुनी तो अगले दिन से काम शुरू कर दिया. मुझे लगता है कि आपकी किस्मत में जो फिल्म होती है वह कैसे भी आपके पास आ जाती है. 
Q:इस रोल के लिए आपने क्या तैयारियां कीं?
A:देखिये, हम सब सोचते हैं कि हम को बैडमिन्टन खेलना आता है क्योंकि हम सब गली क्रिकेट और गली बैडमिन्टन खेलते हैं. और मुझे लगा कि दो तीन दिन में मैं सीख लूंगी और फिर शूटिंग शुरू कर दूंगी. लेकिन जब पहले दिन मैं ट्रेनिंग के लिए पहूँची तो मेरे कोच ईशान नकवी ने कह दिया कि आपने रैकेट ही गलत पकड़ा है. तो मैंने कहा अरे यह तो थोडा फ्लॉप शो हो गया. और फिर मैंने रियलाइज़ किया कि जो खिलाड़ी देश के लिए यह गेम खेलते हैं और जो आम लोग गली मैदान में बैडमिन्टन खेलते हैं उनमे काफी अंतर होता है. मुझे लगता है कि इस देश में बैडमिन्टन की कद्र होनी चाहिए. मुझे लगता है कि बैडमिन्टन बेहद मुश्किल खेल है मगर प्लेयर्स इसे बड़ी आसानी से खेलते हैं और हम सब अपने घर में ऐसे खेलते हैं जैसे यह कोई बहुत आसान सा खेल है मगर ऐसा नहीं है. आपको बताऊँ कि मुझे इस खेल की बेसिक चीजों को सीखने में पांच छः महीने लग गए. इशान और नायेशा इतना अच्छा बैडमिन्टन खेलते थे कि मैं इन्हें देखकर हैरान रह जाती थी और सोचती थी कि मैं इनके सामने इनकी तरह कैसे खेल पाउंगी. मैं सोचती थी कि यह थोडा सा बुरा खेल लें तो मैं शायद कर पाऊं. लेकिन ईशान और नायेशा ने मुझे इंस्पायर किया.
 

Q:इस रोल को निभाने के लिए आपने साइना नेहवाल से क्या मदद ली?
A:मैं हैदराबाद में साइना से मिलने उनके घर गई थी. उन्होंने मुझसे कहा कि मैंने तुम्हे कभी स्पोर्ट्स खेलते हुए नहीं देखा है तो मैंने भी कहा कि जी हाँ, मैंने भी कभी अपने आप को ऐसे नहीं देखा. उन्होंने कहा कि मुझे यकीन है कि तुम खेल पाओगी. तो मैं ने कहा कि हाँ, लेकिन मुझे आपसे मिलकर लग रहा है कि कुछ गड़बड़ हुई है. मैं उनका घर देखकर हैरान रह गई थी. उनके घर में सिर्फ बैडमिन्टन रैकेट्स, शटल कॉक, मैडल और ट्रोफिज़ हैं. मुझे लगता है कि उनका अपना सामान कम है और यह सब ज्यादा है. और यह सब देखकर मुझ पर डाली गई जिम्मेदारी का बड़ा एहसास हुआ. उनसे मिलकर जब मैं वापस आई तो मैंने डबल ट्रेनिंग लेनी शुरू की. अगर मैं साईना का एक प्रतिशत भी खेल पाउंगी तो मैं खुद को कामयाब समझूंगी. वैसे तो दर्शक इसका फैसला करेंगे जब यह फिल्म रिलीज होगी.
Q:साइना के किरदार के साथ न्याय करने का आप पर कितना प्रेशर था, जबकि आपको यह भी पता था कि यह रोल कोई और करने वाला था?
A:देखिये मैंने कोई और प्रेशर न लेते हुए बस अपना और अपने डायरेक्टर का प्रेशर लिया, क्योंकि मुझे डायरेक्टर को इम्प्रेस करना था. मुझे यह खेल सीखने के लिए मेहनत करनी थी इसलिए मैंने कोई और दबाव नहीं लिया. मुझपर प्रेशर सिर्फ इस बात का था कि क्या मैं जो भी सीख रही हूं उससे मेरे कोच खुश हैं या नहीं और मैं स्क्रीन पर कैसी दिख रही हूं, इसे लेकर मेरे डायरेक्टर खुश हैं या नहीं. साइना का हम सब के साथ फुल सपोर्ट रहा है. मैं जब भी उन्हें फोन करती थी कुछ पूछती थी साइना बताती थीं. उससे प्रेशर मैनेजमेंट काफी कम हो जाता है. फिर अमोल गुप्ते दो तीन साल से उनसे मिल रहे थे, उनकी फैमिली से मिल रहे थे. मेरे लिए इस फिल्म‌ में काम करना एक चैलेन्ज था और हर फिल्म में काम करना एक रिस्क तो होता ही है.
Q:शूटिंग शुरू करने से पहले आप साइना के बारे में कितना कुछ जानती थीं?
A:देखिये उनके बारे में तो काफी कुछ मीडिया में, गूगल पर पहले से था मगर मुझे मीडिया तक उनके पहुंचने के सफर के बारे में नहीं पता था. वो कैसे और कहाँ पली-बढ़ीं, उनकी जिंदगी का हीरो कौन था, उन्होंने किस से प्रेरणा ली, किसने यहां तक पहुंचने में उनकी मदद की. साइना जैसी वर्ल्ड क्लास प्लेयर के इमोशनल सफर और पर्दे के पीछे की कहानी के बारे में मुझे बाद में पता चला. डायरेक्टर अमोल गुप्ते ने काफी रिसर्च की, बातें मुलाकातें की. इमोशन के मामले में इस फिल्म को मैंने अपने डायरेक्टर पर छोड़ दिया था. अमोल गुप्ते कमाल के एक्टर भी हैं वह कभी कभी मुझे सीन करके दिखाते थे और मैं सोचती थी ओह माई गॉड, मैं तो ऐसा कभी नहीं कर पाउंगी. क्योंकि मुझे लगता है कि अमोल सर जिस तरह से एक्ट करते हैं कोई उतनी इमोशनल गहराई नहीं रख सकता. अभी भी अगर आप नेशनल एंथम प्ले करें तो मैं रोने लग जाती हूँ. मैं ड्रामेटिक होने के लिए नहीं बोल रही हूँ कि अभी तक नेशनल एंथम मेरी सबसे फेवरिट कम्पोजीशन है.  
Q:फिल्म में नायेशा का कितना किरदार है?
A:हमने फिल्म में साइना के बचपन को बहुत एक्सप्लोर किया है. जब वह इस बच्ची की उम्र की थीं तभी से मेडल जीतती आ रही हैं. इसलिए फिल्म में यंग साईना का रोल काफी है, जिसे नायेशा ने बखूबी प्ले किया है. डायरेक्टर अमोल गुप्ते ने साइना के साथ काफी समय बिताया है.
Q:ट्विटर पर ट्रोल करने वालों के बारे में आपकी क्या राय है?
A:मैं ट्विटर पर कभी किसी को जवाब नहीं देती. मैं दरअसल बहुत अलग दिमाग की लड़की हूँ अगर मुझे लगता है कि जो कोई बोल रहा है वो सही बोल रहा है तो मैं उन्हें बोलती हूँ कि हाँ तुम सही कह रहे हो. लेकिन जब मुझे पता होता है कि कोई सिर्फ बोलने के लिए बोल रहा है तो मैं उसे इग्नोर कर देती हूँ. मैं अपना दिमाग इस्तेमाल करती हूँ कि ट्रोलिंग में कुछ दम है या नहीं, मुझे कुछ कहने की जरुरत भी है नहीं? 
Q:आप साइना की बायोपिक कर रही हैं, अगर कोई आप पर कभी बायोपिक बनाना चाहे?
A:मुझे लगता है कि किसी पर्सनाल्टी पर बायोपिक बनने के लिए उन्हें लाइफ में कई बड़े अचीवमेंट्स हासिल करने पड़ते हैं. उसी से कहानी बनती है और दुनिया देखना चाहती है लेकिन मेरी तो अभी शुरुआत है. शायद 50 साल बाद जब मैं जिन्दगी में कुछ अच्छा करुँगी तब मुझ पर शायद बायोपिक बन सके. 

Q:लड़का लड़की में भेदभाव न हो, विमेंस डे के अवसर पर ऐसी बातें होती हैं, आप इस बारे में क्या कहना चाहेंगी?
A:मैं एक ऐसे घर में एक ऐसी फैमिली में बड़ी हुई हूँ जहाँ पे लड़की लड़के में कभी कोई अंतर महसूस नहीं हुआ. इनफैक्ट मुझे कई बार मेरे दो भाइयों से ज्यादा मौके मिलते थे. जब से में फ़िल्मी दुनिया में आई हूँ और मीडिया में वीमेन एम्पावरमेंट, लड़का लड़की में कोई फर्क नहीं जैसी बातें सुनती हूँ. मैं ऐसे परिवार से आई हूँ जहाँ एजुकेशन से लेकर दुसरे मामलो में सबसे ज्यादा खर्च मुझपर किया गया. मुझे तो यह लगता है कि इस बारे में हम आज बात भी क्यों करते हैं. इस बारे में बात करने की जरुरत नहीं है. इन्सान की काबिलियत देखनी चाहिए, उनका जेंडर नहीं. 
Q:फिल्म के ट्रेलर में एक गीत 'परिंदा' सुनाई पड़ता है, बेहद जोशीला गाना लग रहा है?
A:जी हाँ, यह बेहद जोशीला सांग है. मैं परिंदा क्यों बनूं मुझे आसमां बनना है, मैं पन्ना क्यों रहूँ मुझे दास्तां बनना है.'' हमारे वर्क आउट सांग का यह नया गीत है. जब हम ट्रेड मिल पर भाग रहे होंगे तो हम यह एंथम सुनेंगे. 

by Gaazi Moin


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